नैनीताल में 12 वर्षीय मासूम बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म की घटना ने पूरे उत्तराखंड को झकझोर कर रख दिया है। जैसे-जैसे इस मामले में जांच आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे स्थानीय समाज का गुस्सा उबाल पर है। अब न्यायपालिका से जुड़े लोग भी खुलकर सामने आ गए हैं। जिला बार एसोसिएशन नैनीताल ने बच्ची को न्याय दिलाने के लिए नि:शुल्क अधिवक्ता पैनल का गठन किया है और मुख्यमंत्री से फास्ट ट्रैक कोर्ट की मांग भी की है।
अधिवक्ताओं ने संभाली न्याय की कमान
नैनीताल जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भगवत प्रसाद ने बताया कि, “वकीलों का काम है न्याय दिलाना, और यही हम कर रहे हैं। बच्ची को न्याय दिलाने के लिए छह अधिवक्ताओं का नि:शुल्क पैनल गठित किया गया है। यह पैनल पूरी तरह से पीड़िता की पैरवी करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि आरोपी को सजा मिले।”
उन्होंने यह भी कहा कि बार एसोसिएशन की मांग है कि जल्द से जल्द चार्जशीट कोर्ट में दाखिल हो ताकि ट्रायल की प्रक्रिया शीघ्र शुरू हो सके। “हम चाहते हैं कि केस नैनीताल में ही चले और अभियुक्त को उसके कृत्य की सजा मिले,” उन्होंने कहा।
फास्ट ट्रैक कोर्ट की मांग, सीएम को भेजा ज्ञापन
बार एसोसिएशन के सचिव दीपक रूवाली ने बताया कि नैनीताल जैसे शांत शहर में इस तरह की घिनौनी घटना ने सभी को झकझोर दिया है। उन्होंने कहा, “बच्ची को त्वरित न्याय दिलाने के लिए हमने डीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा है, जिसमें नैनीताल मुख्यालय पर एक फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की मांग की गई है।”
दीपक रूवाली ने स्पष्ट किया कि अधिवक्ता केवल तकनीकी कानूनी सहायता ही नहीं देंगे बल्कि मानसिक रूप से भी पीड़िता और उसके परिवार को सहयोग देंगे। उन्होंने कहा, “यदि ज़रूरत पड़ी तो और अधिवक्ताओं को भी पैनल में शामिल किया जाएगा। बच्ची के पक्ष में हर संभव प्रयास किया जाएगा।”
घटना से नैनीताल की आत्मा आहत: हितेश पाठक
जिला न्यायालय में अधिवक्ता हितेश पाठक ने इस घटना की तीव्र निंदा करते हुए कहा, “एक बुजुर्ग ठेकेदार का इस तरह एक मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म करना बेहद शर्मनाक है। यह न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि नैनीताल जैसे शहर की आत्मा को भी आहत करता है।”
उन्होंने आगे कहा, “न्यायालय निष्पक्ष रूप से अपना काम कर रहा है। हम आशा करते हैं कि कानून के अनुसार उस्मान को ऐसी सजा मिले जो समाज के लिए एक कड़ा संदेश दे।”
‘बच्ची की जिंदगी पर पड़ा गहरा असर’ – शगुफ्ता, महिला अधिवक्ता
जिला न्यायालय की महिला अधिवक्ता शगुफ्ता ने कहा कि “बच्ची इतनी छोटी है कि शायद उसे अभी यह तक नहीं समझ आया होगा कि उसके साथ क्या हुआ। इस घटना का असर उसकी पढ़ाई, मानसिक स्वास्थ्य और पूरी जिंदगी पर पड़ेगा। एक बच्ची के जीवन को बर्बाद करने वाले को कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए।”
वकीलों का कहना – चार्जशीट हो फौरन दाखिल
सभी अधिवक्ताओं का यह सामूहिक मत है कि पुलिस को चार्जशीट तैयार कर फौरन कोर्ट में दाखिल करनी चाहिए। इससे न सिर्फ ट्रायल की प्रक्रिया तेज़ होगी, बल्कि पीड़िता और उसके परिवार को विश्वास भी मिलेगा कि न्यायिक प्रणाली उनके साथ है।
बार के अध्यक्ष भगवत प्रसाद ने कहा, “हम अदालत से आग्रह करते हैं कि वह इस मामले को जल्द सुनवाई के लिए लिस्ट करे। बच्ची और उसके परिवार को हर दिन न्याय की प्रतीक्षा में जीना पड़ रहा है। हम चाहेंगे कि जल्द से जल्द न्याय मिले।”
पैनल में कौन-कौन हैं अधिवक्ता?
नैनीताल बार एसोसिएशन ने इस मामले के लिए जिन छह अधिवक्ताओं को पैनल में शामिल किया है, उनमें प्रमुख नाम हैं:
- संजय त्रिपाठी
- स्वाति परिहार
(दोनों अधिवक्ताओं ने बच्ची की पैरवी नि:शुल्क करने की जिम्मेदारी ली है)
बाकी चार अधिवक्ताओं के नाम आधिकारिक तौर पर जल्द जारी किए जाएंगे।
समाज में बढ़ती संवेदनशीलता
नैनीताल दुष्कर्म कांड 2025 ने सिर्फ न्याय व्यवस्था को नहीं, बल्कि पूरे समाज को भी आत्मविश्लेषण के लिए विवश कर दिया है। अंजुमन इस्लामिया कमेटी जैसे धार्मिक संगठनों ने आरोपी का सार्वजनिक बहिष्कार कर सख्त रुख अपनाया है। स्थानीय नागरिक भी सत्यापन अभियान और अवैध घुसपैठियों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
प्रशासन और पुलिस की भूमिका
पुलिस ने आरोपी उस्मान को गिरफ्तार कर लिया है। बच्ची का मेडिकल परीक्षण कर लिया गया है और घटनास्थल का नक्शा तैयार कर जांच को आगे बढ़ाया जा रहा है। सीएमओ के अनुसार, मेडिकल रिपोर्ट डीजी ऑफिस भेजी जा चुकी है, जिससे अब चार्जशीट दाखिल करने की प्रक्रिया भी जल्द शुरू हो सकती है।
निष्कर्ष
इस पूरे घटनाक्रम से एक बात स्पष्ट होती है—नैनीताल की जनता, वकील, समाजिक संगठन और प्रशासन सब एक सुर में इस घिनौनी घटना की निंदा कर रहे हैं और पीड़िता को न्याय दिलाने की दिशा में लगातार प्रयासरत हैं।
इस घटना ने एक बार फिर हमें याद दिलाया है कि न्याय केवल अदालत में नहीं, समाज की चेतना में भी होना चाहिए। वकीलों की इस ऐतिहासिक एकजुटता ने यह साबित कर दिया है कि जब बात एक मासूम बच्ची के जीवन की हो, तो संविधान की किताब हर दिल में खुल जाती है।