उत्तराखंड संस्कृत ग्राम योजना 2025 अब धरातल पर उतरने को तैयार है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में हुई कैबिनेट बैठक में राज्य के हर जिले में एक संस्कृत ग्राम विकसित करने की सैद्धांतिक सहमति दे दी गई है। जल्द ही आपको उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग आपस में संस्कृत में संवाद करते दिखेंगे।
संस्कृत शिक्षा विभाग इस योजना को राज्य की सांस्कृतिक पहचान से जोड़ते हुए आगे बढ़ा रहा है। इसका उद्देश्य न केवल नई पीढ़ी को संस्कृत भाषा से जोड़ना है, बल्कि उन्हें वेद, उपनिषद, पुराण और भारतीय दर्शन की गहराइयों से भी परिचित कराना है।
कहां-कहां बनेंगे संस्कृत ग्राम?
उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में एक-एक गांव को संस्कृत ग्राम के रूप में विकसित किया जाएगा:
- देहरादून: भोगपुर (डोईवाला)
- टिहरी: मुखेम (प्रतापनगर)
- उत्तरकाशी: कोटगांव (मोरी)
- रुद्रप्रयाग: बैंजी (अगस्तमुनि)
- चमोली: डिम्मर (कर्णप्रयाग)
- पौड़ी: गोदा (खिर्सू)
- पिथौरागढ़: उर्ग (मूनाकोट)
- अल्मोड़ा: पाण्डेकोटा (रानीखेत)
- बागेश्वर: सेरी
- चंपावत: खर्क कार्की
- हरिद्वार: नूरपुर (बाहदराबाद)
- नैनीताल: पाण्डेगांव (कोटाबाग)
- उधमसिंह नगर: नगला तराई (खटीमा)
संस्कृत में होगी रोजमर्रा की बातचीत
संस्कृत शिक्षा विभाग के सचिव दीपक कुमार ने बताया कि इन गांवों में लोगों को सनातन संस्कृति, वेद, पुराण और भारतीय ज्ञान परंपरा से परिचित कराया जाएगा। साथ ही, ग्रामीणों को संस्कृत में बातचीत करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
जल्द होगी शिक्षकों की तैनाती
कैबिनेट की स्वीकृति के बाद अब संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू होने वाली है। शिक्षकों के माध्यम से गांवों में संस्कृत संवाद को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके माध्यम से उत्तराखंड को ‘देवभूमि’ की सांस्कृतिक पहचान के अनुरूप और भी सशक्त किया जाएगा।
मुख्यमंत्री धामी की यह पहल उत्तराखंड को संस्कृत और भारतीय संस्कृति का गढ़ बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।